अपने पुराने दोस्त से किस प्रकार मिलें

यह वह समय है, जब हममें से अधिकांश को नौकरी के लिए अपने गृह नगरों से दूर दूसरे शहरों या राज्यों में जाना पड़ता है ...

इस तरह हम अपने पुराने दोस्तों के साथ लंबे समय तक संपर्क खो देतें हैं... वाट्सएप/  एफबी पर जुड़ना वास्तव में कई वर्षों के बाद किसी करीबी से मिलने से बहुत अलग है......

और यहां हम में से अधिकांश एक बड़ी गलती करते हैं...



                                                                     # अपने दोस्त से कैसे मिले?


जब भी आप अपने किसी पुराने दोस्त से मिले, तो ऐसी कोई बात नहीं करे कि जो बात आपकी हैसियत या उसकी हैसियत दिखाती हो..

क्योकी भगवान ने आपको रिश्ते और परिवार को चुनने की आजादी नहीं दी....लेकिन दोस्त चुनने की आजादी दी है..

याद रखिए आप किसी को अपना दोस्त सिर्फ ईसलिये मानते  हैं, क्यो कि आप एक दूसरे से कोई भी एहसान की उम्मीद नहीं करते हैं..

जो कुछ भी मन में आता है वो दिल से.. और हक से आता है..


                                                        चलिए मैं आपके साथ एक घटना साझा करता हूं...

एक बार मैं एक दोस्त से सालो बाद मिला...

मैं उससे बात करने के लिए बहुत उत्साहित था......

लेकिन अचानक मुझे अहसास हुआ कि वह पुरानी यादों के बारे में बात करने के बजाय अपनी उच्च आर्थिक स्थिति दिखाने लगा है...


उसने सीधा पूछा.............यार तेरी सैलरी कितनी है?

और मैंने मनमे सोचा... ..( अबे डब्बे !!... ये तो हमें क्लास 8 वीं में ही पढ़ा दिया गया था कि हमें कभी किसी महिला की उम्र और पुरुष की सैलरी नहीं पूछनी चाहिए... कोई भी महिला अपनी उम्र से संतुष्ट नहीं होती है और इस धरती पर कोई भी आदमी अपनी तनख्वाह से संतुष्ट नहीं होता..)..( Smile  )


वैसे मैंने भी  उसे उत्तर दिया ...

भाई एक बात बता..अगर मेरी सैलरी 1 लाख रुपये महीना हुई तो क्या तू मुझे रोज दिन में तीन बार फोन करके मेरा हाल - चाल पूछेगा  ???...

या अगर मेरी सैलरी 12000 रुपये महीना हुई तो क्या मुझे पहचानने से भी इनकार कर देगा...??


से मुझसे स जवाब की उम्मीद नहीं थी......और कहा .......नहीं यार..इन दोनों में से कुछ नहीं...

मेरा वो मतलब नहीं था... में तो बस ऐसे ही पूछ रहा था...


मैंने उसे शांत किया .....

..अरे भाई हम दोस्त तब से है जब हम दोनों की ही जेब खाली थी..

तो फिर आज क्यों पूछना के आज किसकी जेब में कितना पैसा है ??



चल बाहर चलते हैं..

( और उस दिन, मेरा मतलब वास्तव में "  बाहर "  था .... "  बार"  नहीं !!...) ..( smile  )



क्या आपको घटना से बात समझ में आई ??


डूड !!....पहले से ही हमारी असली पहचान प्रोफेशनल रिलेशनशिप के नीचे दबी हुई है

...तो जब कभी भी अपना पुराना दोस्त मिल जाए तो उससे अपनी खुली बाहों से मिले...


ये पुराने दोस्त ही हैं जो हमारा सच्चा आईना है, जिस्मे  हम अपनी असली सूरत देख सकते हैं..वर्ना  रोज़ाना मुखोटा लगाकर तो हम  ऑफिस जा ही रहे हैं... हैं ना !!


इस धरती पर दोस्त ही एक ऐसा रिश्ता है, जो हमारे लिए सच्ची खुशी लेकर आता है।


क्या आप जानते हैं क्यों. ???.. ...

क्योंकि इस रिश्ते में कोई अनिवार्य प्रतिबद्धता ( MANDATORY COMMITMENT  ) नहीं होती ...

दोस्त नाना या  न बनाना   पूरी तरह से हमारे हाथ में है...


यही इस रिश्ते की खूबसूरती है.....तुम मुझसे प्यार करते हो और मैं तुमसे तब तक प्यार करता हूं जब तक हम दोनों राजी  रहते हैं .....

कोई झूठा वादा नहीं...कोई पारिवारिक दबाव नहीं...बिछड़ने का अपराध बोध नहीं..

सब कुछ सच्चा और खुश..जब तक "   हम "   सहमत हैं....

                                                                               आप सभी को प्यार !!

                                                                                                                   ..........love you all   !!