गुब्बारे वाला
जीवन की एक वास्तविक घटना साझा कर रहा हूं :-
ऐसा समय होता है जब आपके दिल के अंदर से " असली आप " की आवाज़ आती है, आपको खुद को फिर से खोजने का मौका देती है, जब आप कुछ समय के लिए खो जाते हैं..... अपने असली स्व से दूर... और बहुत व्यावहारिक व्यवहार करते हैं, जो "मानव जैसा" नहीं है !!
मैं एक वास्तविक घटना साझा करना चाहता हूँ जो जुलाई 2024 के आसपास मेरे साथ घटी थी....
यह सप्ताहांत था और मैं और मेरी पत्नी एक मॉल में खरीदारी कर रहे थे...हम घर लौटने ही वाले थे कि एक " गुब्बारे वाला " मेरे पास आया।
उसने मेरे पास किराने का सामान देखा और अचानक पूछा "बाबू, थोड़ा आटा दिला दो"...
मैं आश्चर्यचकित था, क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि अगर उसे पैसे की ज़रूरत होती तो वह मुझसे कुछ गुब्बारे खरीदने के लिए जोर दे सकता था !! ....
व्यवहारिक रूप से मैं भीख मांगने वालो के सख्त खिलाफ हूं और ज्यादा सोचे बिना, ऊंची आवाज में उससे पूछा "भाई, तुम गुब्बारे वाले हो...शाम का समय है...क्या दिन भर में इतना भी नहीं कमाया के थोड़ा आता ख़रीद सकते हो ??....
उसने मुझे कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप अपनी साइकिल पर चला गया, जिस पर बहुत कम गुब्बारे थे !!
मेरी पत्नी, जो मॉल के बाहर खड़ी थी ..मेरे पास आई और पूछा क्या हुआ ?...मैंने जवाब दिया "कुछ नहीं ...चलो घर चलते हैं" ...हम दोनों फिर घर वापस आ गए, जो मॉल से सिर्फ 2 मिनट की दूरी पर था।
घर पर, जब मैंने किराने का सामान निकालना शुरू किया, मेरी पत्नी ने फिर पूछा, "तुम इतने गंभीर क्यों दिख रहे हो ..क्या तुम कुछ सोच रहे हो ??.....मैंने जवाब दिया "यार, मैंने एक गुब्बारे वाले को डांट दिया ...भीख मांग रहा था !! "
पत्नी ने जवाब दिया "10 रुपये दे देना था, इतने में खुश हो जाता बेचारा !! "
मैंने कहा " नहीं यार..पैसे नहीं..आटा मांग रहा था!! "....
मेरी अंतरात्मा जाग उठी, मेरी जुबान ने अभी मेरे कानों में क्या कहा !!!......मैंने कितना बदतमीजी से व्यवहार किया...क्या यह संभव नहीं था, बेचारा उस दिन " एक गुब्बारा " भी नहीं बेच पाया हो !!...
हे भगवान !!...शायद, वह सोच रहा था, आज वह अपने परिवार का सामना कैसे करेगा, क्योंकि उसके पास "आटा" खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं.....उसकी मजबूरी ने उसे "उस दिन" भीख मांगने पर मजबूर कर दिया !!
मैंने अपनी पत्नी से तुरंत प्लास्टिक बैग में कुछ आटा पैक करने के लिए कहा और कहा "मैं वापस जा रहा हूँ, उस गुब्बारे वाले के पास.....वो शायद भीख नहीं माँग रहा था "
पत्नी ने जवाब दिया " अब वो कहाँ मिलेगा, घर आये 15 मिनट हो चुके हैं !! "
और मैंने कहा " वो मिले ना मिले, लेकिन अगर मैं उसे ढूँढने नहीं गया तो आज मैं सो नहीं पाऊँगा !!"
मैं मॉल वापस आया और उसे ढूँढा...लेकिन वो वहाँ नहीं था...मुझे दोषी महसूस हुआ...फिर मैंने एक और गुब्बारे वाले को देखा जिसके बड़े 4 पहिये वाले ट्रॉली पर बहुत सारे गुब्बारे थे और वो मोबाइल पर बात कर रहा था। मैं उसके पास गया और पूछा "भाई यहाँ थोड़ी देर पहले साइकिल पर एक और भी गुब्बारे वाला था ना...आपने देखा है किसी तरफ जाते हुए ??? "
उसने जिज्ञासावश मुझसे पूछा कि मैं गुब्बारे वाले को क्यों खोज रहा हूँ..मैंने उसे घटना बताई !!...
उसने कुछ देर तक कुछ नहीं कहा लेकिन फिर एक रास्ता बताया और कहा "पास के रोड पर देखो..उधर गया होगा"
मैं पास की अगली सड़क पर चला गया और उसे ढूँढ़ने लगा...भगवान की कृपा से...मैंने उसे ढूँढ़ लिया..वह अपनी साइकिल के साथ पास में खड़ा था और पास से गुज़र रहे लोगों को देख रहा था!!
मैं उसके पास गया और पूछा "लो भाई, ये थोड़ा आटा रख लो" ... बिना किसी हिचकिचाहट के उसने मुझसे आटे का थैला लिया और अपनी साइकिल पर लटका लिया और बिना कुछ कहे जाने लगा...
मैं वापस घर जाने वाला था ... लेकिन नहीं जा सका !!... मेरे दिमाग में एक विचार आया ... क्या आटे का ये छोटा सा थैला आज उसके या उसके बच्चों के लिए पर्याप्त है ??... मैंने फिर से उसे बुलाया ... उसे 50 रुपये दिए ... उसने ले लिए और फिर कहा 'धन्यवाद बाबू !!...
मुझे नहीं पता कि किस कारण से मैंने उससे पूछा ..." भाई एक और गुब्बारे वाले पास की सड़क पर था, अच्छा हुआ उसने मुझे तुम्हारे बारे में बता दिया कि तुम इधर खड़े हो ...
" उसने कहा " हां बाबू, वो मेरा भाई है !! "...
यह सुनकर मैं हैरान रह गया और उससे पूछा " वो जो मोबाइल पर बात कर रहा था ..वो तुम्हारा भाई है ???.....क्या वो तुम्हारी मदद नहीं करता ??..
एक गहरी चुप्पी के साथ, उसने कहा " नहीं !!....
मैं उसके जवाब के लिए उसकी आँखों में दर्द साफ देख पा रहा था...
मैं शब्दहीन था... मैं वापस अपने घर की ओर चला गया लेकिन विचार अभी भी मेरे दिमाग में घूम रहा था ... वे दोनों भाई हैं ... दूसरे के पास बहुत सारे गुब्बारे के साथ एक बड़ी लॉरी थी ... अगर वह अपने मोबाइल फोन को रिचार्ज करने का खर्च उठा सकता था, तो क्या वह अपने भाई की मदद नहीं कर सकता था, जो उस दिन अपने परिवार के लिए आटे के लिए संघर्ष कर रहा था ??
यही जीवन है ... हम इंसान कितने मतलबी हो गए हैं !!
इस घटना के बाद , जब भी कोई कुछ मांगता है , मैं हमेशा अपने भीतर एक " दूसरा विचार " करता हूं "क्या मुझे भीख मांगने को प्रोत्साहित करना चाहिए ? ..... या ' क्या वह व्यक्ति 'वास्तव में जरूरतमंद है !!'
हम पहले इंसान हैं और बाद में साक्षर !!....
और हमें अपने असली स्व को फिर से खोजने के लिए कुछ घटनाओं की ज़रूरत होती है....के हम " वास्तव में कौन हैं !! "
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